क्षिप्रा जल आवर्धन योजना पूर्ण होने के बाद भी नर्मदा पर आश्रित क्यों ठा. जयसिंह पूर्व महापौर

देवास। शहर में एक बार फिर जल संकट ने दस्तक दी है। विगत कई दिनों से शहर में भारी जल संकट उत्पन्न हो गया है शहर की जनता पानी के लिये दर दर भटक रही है, आंदोलन कर रही है लेकिन फिर भी कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। पूर्व महापौर ठा. जयसिंह ने प्रेस वार्ता आयोजित की जिसमें मुख्य रूप से शहर कांग्रेस अध्यक्ष मनोज राजानी, पोपसिंह परिहार, सलीम मामू, सुधीर शर्मा, चंद्रपालसिह सोलंकी, डॉ. रितेश शर्मा, दीपेश कानूनगो, लुकमान अली, पंकज वर्मा, रूपेश कल्याणे, मलखानसिंह, राकेश मिश्रा, मयंक जैन उपस्थित थे। प्रेस वार्ता में ठा. जयसिंह नेे बताया कि आज जो स्थिति बनी हैै उसे मैने महापौर रहते हुए ही समझ लिया था कि यह स्थिति आगे भी आने वाली है इसलिए हम उस समय क्षिप्रा जल आवर्धन योजना लाए थे। और जल समस्या को स्थाई रुप से मिटाने के लिये कांग्रेस शासनकाल में नगर निगम ने अपने 10 वर्षो के प्रयासों से क्षिप्रा नदी पर आधारित पेयजल योजना को क्षिप्रा जल आवर्धन योजना के नाम से 1998-99 में रु. 29.83 करोड़ की लागत वाली योजना तैयार कर जिसे राज्य शासन द्वारा स्वीकृत करवाने के पश्चात नगर निगम देवास द्वारा वर्ष 2003 में योजना के क्रियान्वयन हेतु निविदा आमंत्रित की गई थी। जिसमें न्यूनतम निविदा में मेसर्स लार्सन एण्ड टूबो (एल एण्ड टी) चैन्नई द्वारा रु. 28.00 करोड़ में प्रस्तुत की गई थी, एल एण्ड टी कंपनी पूरे भारत वर्ष की निर्माण के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित एवं विश्वसनीय कंपनी है।
जिसमें निविदा के अंतर्गत ठेकेदार को बैराज के निर्माण पाईप लाईन, टी.पी. पम्प हाउस से संपूर्ण कार्य करना था दिसम्बर 2003 में भाजपा की सरकार बनने के बाद वर्ष 2004 में उक्त्त योजना को तत्कालिन विधायक द्वारा स्थगित करवा दिया और ठेकेदार द्वारा शुरु किये गये कार्य पर भी रोक लगा दी गई थी। अगर उस समय यह योजना लागू हो जाती तो निश्चित ही वर्ष 2005 में ही जल संकट की समस्या समाप्त हो जाती। भाजपा द्वारा योजना का स्वरूप बदला गया जिसमें यह योजना उस समय 28 करोड़ में पूरी होना थी उसकी लागत बढ़ते बढ़ते 70 करोड़ से अधिक हो गई। फिर भी आज हमें जल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
आज क्षिप्रा जल आवर्धन योजना पूर्ण होने के बाद भी हम नर्मदा लिंक परियोजना पर आश्रित है इसका मतलब तो यह हुआ कि इस योजना में जो 70 करोड रूपये से अधिक का व्यय हुआ है वह पूरा पानी में गया। भाजपा ने देवास की जनता की गाड़ी कमाई को पानी में बहा दिया और जनता को फिर से पानी के लिये दर दर भटकने के लिये छोड़ दिया गया है, अब जनता अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही है। मेरे द्वारा वर्ष 2008 में एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से आज की स्थिति से उसी समय अवगत करवा दिया गया था कि भाजपा द्वारा जो परिवर्तन किये गये है उससे भविष्य में पुनः जलसंकट की स्थिति उत्पन्न होगी। मेरी योजना में क्षिप्रा नदी पर डेम बनाकर बारिश का पानी रोककर क्षिप्रा को आत्म निर्भर बनाने की योजना थी जिससे कि हमें कहीं और से पानी लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती । लेकिन आज हम पूरी तरह से नर्मदा क्षिप्रा लिंक पर आश्रित है।
भाजपा शासनकाल में भाजपा द्वारा बंदरबाट की तर्ज पर दो खण्डों में निविदा आमंत्रित कर अगस्त 2006 में बांध के निर्माण के निर्माण हेतु बुलाई गई। निविदा में न्युनतम निविदा मेसर्स न्युकेम इंजीनियर्स द्वारा रुपये 18.51 करोड़ की दी गई जबकि पूर्व में बांध का निर्माण रुपये 13.00 करोड में किया जाना था। रुपये 6.00 करोड़ की अधिक लागत से बनने वाले इस बांध की क्षमता में पूर्व में प्रस्तावित बांध से 25 प्रतिशत कम थी। इस योजना में बांध की उचाई के अनुसार नदी में 4000 मिलियन लीटर पानी की क्षमता होती जबकि नदी के वर्तमान बैराज जो अस्थाई है तथा बांध के बीच तीन किलो मीटर की लम्बाई में खुदाई की जाकर दोनों ओर से बांध बनाकर रीजर वायर 5500 मिलियन लीटर का बनाया जाना था, जिसमें 1500 एम.एल.डी पानी अतिरिक्त संग्रहित होता। इस योजना में रिजवायर में लायनिंग आदि का कार्य नहीं होने से 35 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक पानी सीपेज हो सकता है। जबकि हमारी योजना में मात्र 10 से 15 प्रतिशत पानी सीपेज की संभावना थी वह भी वाष्पीकरण के द्वारा।
अतः इस योजना में 2000 एम.एल.डी. पानी मिल रहा है जो कि पूर्व की योजना से 4675 एम.एल.डी पानी मिलना संभव था। मैं देवास की जनता के माध्यम से पुछना चाहता हूं कि – वर्तमान में जल संकट के लिये कौन जिम्मेदार है? क्या इस वर्ष क्षिप्रा डेम में बारिश का पानी नहीं रोका गया। विधायक एवं महापौर जनता को बताए कि जल संकट के स्थाई हल के लिये कौन सी योजना है और इस योजना से किस प्रकार से जल संकट का स्थाई निदान हो सकता है।
हमारे कार्यकाल में जो योजना 28 करोड की थी वह भाजपा शासन में 34 करोड की योजना बनी और कार्य पूर्ण होते होते वह 70 करोड से अधिक की हो गई।
उक्त दोनों योजना का तुलनात्मक अध्ययन करे तो पूर्व की योजना की तुलना में इस योजना से प्राप्त होने वाला पानी तीन गुना अधिक महंगा होगा।
भवदीय
ठा. जयसिंह
पूर्व महापौर
प्रदेश महासचिव
म.प्र. कांग्रेस कमेटी