देवास

आत्मा और परमात्मा का मिलन ही महारास है -बृज रत्न वंदना श्री


देवास। श्री कृष्ण की लीला से बृज गोपियों सहित समस्त बृज वासी ,पशु पक्षी, प्रकृति और गायों का बढ़ता आपार प्रेम ओर कृष्ण मय होने की लालसा को देख श्री कृष्ण ने योगमाया राधारानी को कहा कि गोपियों के प्रेम काम देव का प्रभाव को देख कर तुम्हे मेरे स्वरूप में समाहित होना पड़ेगा। गोपियों के इस अपार प्रेम को देख कर श्रीकृष्ण ने उन्हें ईश्वरीय भक्ति का साक्षात दर्शन कराने के लिए महारस किया जिसमें बृज की गोपियों को जाता देख देवलोक की दैवीयां जाने लगी। पार्वती जी को महारास में जाता देख भगवान शिव भी महारास जाने लगे जबकि इस रास लीला में किसी पुरुष और देवता का वर्जित था।  किंतु शंकर जी स्वयं गोपी बनकर रासलीला में शामिल होने गए। महारास में जागेश्वर ने योगेश्वर के महारास किया वो महा रास जिसमे जितनी गोपी उतने कृष्ण थे। हर गोपी के साथ परम ब्रह्म ने अदभुत रास किया। वृंदावन के निधि वन में हुआ यह महारास श्रृष्टि में आत्मा और परमात्मा के मिलन था महारास। कहा जाता कि आज भी वृंदावन के निधि वन रात्रि को कोई भी प्राणी नहीं जाता है। इस रास की मधुर गूंज तस्वियों के कानो तक पहुंचती है। जिसके अनेक प्रमाण विद्यमान है। यह विचार क्या कैला देवी मंदिर में हो रही श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस पर श्रीकृष्ण की लीला का लीलामय वर्णन करते हुए बृजरत्न वंदना श्री ने कहे। कथा प्रसंग में अक्रूर जी मथुरा से श्रीकृष्ण को लेने आए माता यशोदा के अपने लाला से विरह का करुण रस के साथ वर्णन गोपियों का रुदन का चित्रण किया। कलाकारों का अभिनय देख कर श्रोता भाव विभोर हो गए। प्रसंग में कृष्ण द्वारा मथुरा में कंस वध का वर्णन किया। व्यास पीठ की पूजा अनामिका गर्ग,  श्रीमती ज्योति अग्रवाल, अक्षय अग्रवाल नंदुरबार , जानवी अग्रवाल, जेयस गर्ग, प्राची गर्ग ने की।
आरती में  राष्ट्रीय कवि वेदव्रत बाजपेई लखनव, सुरेंद्र यादवेंद्र  बारां राजस्थान, राष्ट्रीय कवि देवकृष्ण व्यास, ठाकुर मनोहर सिंह,गोविन्द अग्रवाल, हुकमचंद अग्रवाल सोनकच्छ, मोहन श्रीवास्तव आदि उपस्थित थे । बड़ी संख्या में महिला पुरुषों ने कथा श्रवण की।

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